Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi

Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi

यह विचार दर्शाते हैं कि परम सत्य का ज्ञान बुद्धि से नहीं, बल्कि वेदों और शास्त्रों से प्राप्त होता है। गीता को सर्वोपरि माना गया है, जो आत्मा के अमरत्व और शरीर की नश्वरता का बोध कराती है। पुनर्जन्म केवल शरीर का परिवर्तन है, आत्मा अजर-अमर रहती है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुख-दुख से परे उठकर धर्म के अनुसार कार्य करने का उपदेश दिया।

संसार क्षणिक है और स्थायी सुख केवल भगवान की भक्ति में ही संभव है। वेदव्यास जी के अनुसार, संसारिक संबंध स्वार्थ से जुड़े होते हैं, जबकि सच्चा आनंद केवल भगवान से प्राप्त होता है। धर्म, उपवास और पुण्य कर्म स्वर्गीय फल देते हैं, परंतु मोक्ष केवल भगवत-भक्ति से संभव है।श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म में स्थित रहने और फल की आसक्ति त्यागने का उपदेश दिया। गुरु गोबिंद सिंह ने सिखाया कि क्रोध पर नियंत्रण आवश्यक है, क्योंकि गुस्से में किया गया कर्म निश्काम नहीं रह जाता। शंकराचार्य ने भगवत-प्राप्ति को ही जीवन का लक्ष्य बताया, अन्यथा जन्म-मरण का चक्र चलता रहेगा।

मन की शुद्धि के लिए साधना आवश्यक है, जैसे शरीर के लिए व्यायाम। आसक्ति, क्रोध, और लोभ मन के रोग हैं, जो पतन की ओर ले जाते हैं। आत्मा की मुक्ति भगवान की कृपा और भक्ति से ही संभव है। सच्ची कृपा का अर्थ आत्म-संतोष और अंतःकरण की शुद्धि है, न कि भौतिक समृद्धि।ज्ञानी सुख-दुख से परे होता है और आत्म-साक्षात्कार से मोक्ष प्राप्त करता है। अंततः भगवान की भक्ति ही वेदों का सार है, जो आत्मा को स्थायी शांति और सच्चे आनंद की ओर ले जाती है।

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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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    मन को स्वस्थ रखने के लिए नियमित साधना आवश्यक है, जैसे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य आवश्यक हैं। संसार में रहते हुए मन को अशांत करने वाले राग, द्वेष और अन्य विकार मिलते हैं, इसलिए प्रतिदिन कुछ समय भगवान के चिंतन में लगाना चाहिए। जैसे व्यायाम श...

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  • Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 46

    क्रोध, लोभ और कामना मन के रोग हैं। कामना से क्रोध और लोभ उत्पन्न होते हैं। जब कामना पूरी नहीं होती, क्रोध आता है, जिससे बुद्धि नष्ट हो जाती है। कामना पूरी होने पर लोभ बढ़ता है, जिससे शांति नहीं मिलती। श्रीकृष्ण कहते हैं कि शांति कामनाओं के त्याग से मिलती है, न कि उनकी पूर्ति से। कामना वस्तुओं के ...

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    संसार में सुख का चिंतन करने से आसक्ति और कामना उत्पन्न होती हैं, जो क्रोध और लोभ का कारण बनती हैं। श्रीकृष्ण के अनुसार, बार-बार सुख के विचार से मन वस्तु या व्यक्ति से जुड़ता है, जिससे आसक्ति और कामनाएँ बढ़ती हैं। आनंद की इच्छा स्वाभाविक है, परंतु इससे मुक्ति पाने के लिए संसार में सुख का चिंतन त्य...

  • Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 48

    वैराज्य प्राप्त कर संसार की आसक्ति से मुक्त होकर ब्राह्मी स्थिति, यानी भगवत प्राप्ति की अवस्था होती है। भगवान की कृपा से जीव के संचित कर्म भस्म हो जाते हैं, और वह दिव्य ज्ञान, प्रेम और आनंद से युक्त होकर जीवन मुक्त कहलाता है। यह अवस्था स्थायी होती है, और जीव संसार के दुख-सुख से ऊपर उठ जाता है।