Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 27
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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वेद व्यास जी कहते हैं कि संसार के सारे संबंध स्वार्थ पर आधारित होते हैं। हर जीव अपने सुख के लिए प्रेम करता है, चाहे देवता हों, मनुष्य हों या ऋषि। आत्मा का स्वभाव है आनंद की तलाश, और जब तक भगवद् प्राप्ति नहीं होती, हम असली आनंद से वंचित रहते हैं। संसार में सभी संबंध और प्रेम स्वार्थ से प्रेरित होते हैं, चाहे वह माता-पिता, पति-पत्नी या मित्रों का हो। इसलिए, हमें समझना चाहिए कि परमात्मा ही हमारा असली संबंध है, और उन्हीं में शरण लेनी चाहिए।
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 28
यह कहानी जीवन की नश्वरता और आत्मा के शाश्वत सत्य पर केंद्रित है। एक युवक स्वामी जी से संसार की स्वार्थपूर्ण प्रकृति पर सवाल उठाता है। स्वामी जी एक नाटक रचते हैं जहां युवक मृत होने का नाटक करता है, और उसके प्रियजनों से उसकी जगह मरने के लिए पानी पीने को कहते हैं। कोई तैयार नहीं होता। इससे युवक समझ ...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 29
अर्जुन ने गीता सुनकर व्यवसायात्मिक बुद्धि प्राप्त की, लेकिन यह उसकी बुद्धि की शक्ति थी। हम लोगों को इस ज्ञान पर बार-बार चिंतन कर अपनी बुद्धि को दृढ़ बनाना होगा। संसार में कोई भी चीज़ स्थायी नहीं है, अंत में कुछ साथ नहीं जाता। हमारे शास्त्रों के अनुसार, हमें भगवान को अपना सबकुछ मानकर, उनकी शरण में...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 30
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि वेद की कर्मकांडीय बातों में मत उलझो, क्योंकि वेद के कर्मकांड ईश्वरप्राप्ति का मार्ग नहीं हैं। हालांकि वेद भगवान की वाणी हैं, फिर भी केवल कर्मकांड से मोक्ष नहीं मिलता। गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को वेद के कर्मकांड से ऊपर उठने और सिर्फ उनकी शरण में आने का निर्देश ...