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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 39

Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi • 12m

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    भगवान जब कर्मों के अनुसार जीव को कष्ट देते हैं, हम विचलित होते हैं, पर वह कष्ट भी उनकी कृपा है, ताकि हम संसार से विरक्त होकर भगवान की ओर बढ़ें। जैसे माँ खिलौना छीनकर बच्चे को दूध पिलाती है, वैसे ही भगवान हमें सही मार्ग दिखाने के लिए संसारिक सुख छीनते हैं। श्रीकृष्ण ने कहा, स्थितप्रज्ञ वह है जो बा...

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    वास्तविक कृपा का अर्थ आत्मा का कल्याण और अंतःकरण की शुद्धि है, न कि संपत्ति या भौतिक समृद्धि। अगर किसी ने सब कुछ खो दिया, लेकिन अंतःकरण शुद्ध कर लिया, तो उसने जीवन की बाजी जीत ली। संसार की दौलत या सुख अस्थायी हैं, लेकिन आत्मिक शुद्धि और भगवान का प्रेम सच्ची कृपा है। चाहे दुख हो या सुख, संत या स्थ...

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    संसार में सुख नहीं, असली सुख भगवान में है। हमने संसार में सुख खोजा, जिससे आसक्ति हो गई। अब भगवान में सुख का चिंतन बार-बार करें, इससे भगवान के प्रति आसक्ति बढ़ेगी। जैसे संसारिक इच्छाओं से आसक्ति होती है, वैसे ही भगवान की कामना करें। भगवान की इच्छा अंतःकरण को शुद्ध करती है। संतों ने बताया है कि भगव...