Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 41
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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वास्तविक कृपा का अर्थ आत्मा का कल्याण और अंतःकरण की शुद्धि है, न कि संपत्ति या भौतिक समृद्धि। अगर किसी ने सब कुछ खो दिया, लेकिन अंतःकरण शुद्ध कर लिया, तो उसने जीवन की बाजी जीत ली। संसार की दौलत या सुख अस्थायी हैं, लेकिन आत्मिक शुद्धि और भगवान का प्रेम सच्ची कृपा है। चाहे दुख हो या सुख, संत या स्थितप्रज्ञ व्यक्ति उसे भगवान की कृपा मानता है और अंतःकरण की शुद्धि की ओर बढ़ता है, बिना राग-द्वेष के, और मन को भगवान में स्थिर रखता है।
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मन को स्वस्थ रखने के लिए नियमित साधना आवश्यक है, जैसे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य आवश्यक हैं। संसार में रहते हुए मन को अशांत करने वाले राग, द्वेष और अन्य विकार मिलते हैं, इसलिए प्रतिदिन कुछ समय भगवान के चिंतन में लगाना चाहिए। जैसे व्यायाम श...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 44
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