Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 42
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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संसार में सुख नहीं, असली सुख भगवान में है। हमने संसार में सुख खोजा, जिससे आसक्ति हो गई। अब भगवान में सुख का चिंतन बार-बार करें, इससे भगवान के प्रति आसक्ति बढ़ेगी। जैसे संसारिक इच्छाओं से आसक्ति होती है, वैसे ही भगवान की कामना करें। भगवान की इच्छा अंतःकरण को शुद्ध करती है। संतों ने बताया है कि भगवान का प्रेम अमृत के समान है। जब भगवान की कामना बढ़ती है, आत्मा शुद्ध होती जाती है, और संसारिक इच्छाओं से स्वतः वैराग्य हो जाता है।
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मन को स्वस्थ रखने के लिए नियमित साधना आवश्यक है, जैसे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य आवश्यक हैं। संसार में रहते हुए मन को अशांत करने वाले राग, द्वेष और अन्य विकार मिलते हैं, इसलिए प्रतिदिन कुछ समय भगवान के चिंतन में लगाना चाहिए। जैसे व्यायाम श...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 44
एक व्यक्ति ने महात्मा जी से पूछा कि पुरी पहुँचने में कितना समय लगेगा। महात्मा जी ने पहले उत्तर नहीं दिया, लेकिन एक घंटे साथ चलने के बाद कहा कि उसे सात घंटे लगेंगे। उन्होंने बताया कि बिना उसकी गति जाने समय बताना संभव नहीं था। इसी प्रकार, भगवत प्राप्ति का समय भी इस पर निर्भर करता है कि व्यक्ति कितन...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 45
श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि क्रोध और लोभ मन के रोग हैं, लेकिन कामना उससे भी भयानक है। कामनाएं जैसे देखने, सुनने, प्रतिष्ठा की इच्छाएं, मन को भटकाती हैं। क्रोध में व्यक्ति अपनी बुद्धि खो देता है, जबकि लोभ कभी तृप्त नहीं होता। तुलसीदास ने भी रामायण में मानस रोगों का वर्णन किया है। श्री कृष्ण ब...