Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 40
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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भगवान जब कर्मों के अनुसार जीव को कष्ट देते हैं, हम विचलित होते हैं, पर वह कष्ट भी उनकी कृपा है, ताकि हम संसार से विरक्त होकर भगवान की ओर बढ़ें। जैसे माँ खिलौना छीनकर बच्चे को दूध पिलाती है, वैसे ही भगवान हमें सही मार्ग दिखाने के लिए संसारिक सुख छीनते हैं। श्रीकृष्ण ने कहा, स्थितप्रज्ञ वह है जो बाहरी इच्छाओं को त्याग कर आत्मा में संतुष्ट रहता है। सुख-दुख में समान रहते हुए भगवान की कृपा मानता है और भय या इच्छा से प्रभावित नहीं होता।
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 41
वास्तविक कृपा का अर्थ आत्मा का कल्याण और अंतःकरण की शुद्धि है, न कि संपत्ति या भौतिक समृद्धि। अगर किसी ने सब कुछ खो दिया, लेकिन अंतःकरण शुद्ध कर लिया, तो उसने जीवन की बाजी जीत ली। संसार की दौलत या सुख अस्थायी हैं, लेकिन आत्मिक शुद्धि और भगवान का प्रेम सच्ची कृपा है। चाहे दुख हो या सुख, संत या स्थ...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 42
संसार में सुख नहीं, असली सुख भगवान में है। हमने संसार में सुख खोजा, जिससे आसक्ति हो गई। अब भगवान में सुख का चिंतन बार-बार करें, इससे भगवान के प्रति आसक्ति बढ़ेगी। जैसे संसारिक इच्छाओं से आसक्ति होती है, वैसे ही भगवान की कामना करें। भगवान की इच्छा अंतःकरण को शुद्ध करती है। संतों ने बताया है कि भगव...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 43
मन को स्वस्थ रखने के लिए नियमित साधना आवश्यक है, जैसे शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य आवश्यक हैं। संसार में रहते हुए मन को अशांत करने वाले राग, द्वेष और अन्य विकार मिलते हैं, इसलिए प्रतिदिन कुछ समय भगवान के चिंतन में लगाना चाहिए। जैसे व्यायाम श...