Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 37
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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हम कर्म करते हैं, लेकिन फल हमारे हाथ में नहीं होता। यदि हम फल को भगवान को समर्पित कर दें, तो अच्छा या बुरा जो भी हो, उसे उनकी इच्छा मानकर स्वीकार कर सकते हैं। यह समझ जरूरी है कि मेहनत हम करते हैं, पर फल भगवान की कृपा से मिलता है। जब जीव समझता है कि वह भगवान का अंश है, तभी यह बुद्धि आती है। जैसे पेड़ के अंग उसकी सेवा करते हैं, वैसे ही हम भगवान की सेवा करके सही संतोष और सुख प्राप्त करते हैं।
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भगवान से प्रेम करने वाला सभी धर्मों का पालन कर लेता है। श्रीकृष्ण ने उद्धव से कहा, शास्त्रों में बहुत नियम बताए हैं, लेकिन जो उनके गूढ़ रहस्य समझकर मुझसे प्रेम करता है और फल-आसक्ति छोड़ देता है, वह सबसे श्रेष्ठ साधक है। कर्मकांड के नियमों को कचरे की तरह त्यागने वाला व्यक्ति, जिसने भगवान से संबंध ...
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संत की पहचान बाहरी लक्षणों से नहीं होती। लंबाई, वस्त्र या शारीरिक रूप देखकर संत को नहीं पहचाना जा सकता। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि माया से परे संत के लक्षण क्या हैं। श्रीकृष्ण ने समझाया कि संत के भीतर दिव्यता होती है, जिससे उनके सान्निध्य में संसार से वैराग्य और भगवान के प्रति अनुराग स्वतः हो...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 40
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