Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 38
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
•
8m 59s
भगवान से प्रेम करने वाला सभी धर्मों का पालन कर लेता है। श्रीकृष्ण ने उद्धव से कहा, शास्त्रों में बहुत नियम बताए हैं, लेकिन जो उनके गूढ़ रहस्य समझकर मुझसे प्रेम करता है और फल-आसक्ति छोड़ देता है, वह सबसे श्रेष्ठ साधक है। कर्मकांड के नियमों को कचरे की तरह त्यागने वाला व्यक्ति, जिसने भगवान से संबंध जोड़ लिया, वही सच्चे अर्थों में धर्म का पालन करता है। जब समर्पण बुद्धि आ जाती है, तो व्यक्ति वेदों के कर्म-फल से मोहित नहीं होता।
Up Next in Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
-
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 39
संत की पहचान बाहरी लक्षणों से नहीं होती। लंबाई, वस्त्र या शारीरिक रूप देखकर संत को नहीं पहचाना जा सकता। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि माया से परे संत के लक्षण क्या हैं। श्रीकृष्ण ने समझाया कि संत के भीतर दिव्यता होती है, जिससे उनके सान्निध्य में संसार से वैराग्य और भगवान के प्रति अनुराग स्वतः हो...
-
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 40
भगवान जब कर्मों के अनुसार जीव को कष्ट देते हैं, हम विचलित होते हैं, पर वह कष्ट भी उनकी कृपा है, ताकि हम संसार से विरक्त होकर भगवान की ओर बढ़ें। जैसे माँ खिलौना छीनकर बच्चे को दूध पिलाती है, वैसे ही भगवान हमें सही मार्ग दिखाने के लिए संसारिक सुख छीनते हैं। श्रीकृष्ण ने कहा, स्थितप्रज्ञ वह है जो बा...
-
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 41
वास्तविक कृपा का अर्थ आत्मा का कल्याण और अंतःकरण की शुद्धि है, न कि संपत्ति या भौतिक समृद्धि। अगर किसी ने सब कुछ खो दिया, लेकिन अंतःकरण शुद्ध कर लिया, तो उसने जीवन की बाजी जीत ली। संसार की दौलत या सुख अस्थायी हैं, लेकिन आत्मिक शुद्धि और भगवान का प्रेम सच्ची कृपा है। चाहे दुख हो या सुख, संत या स्थ...