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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 47
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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संसार में सुख का चिंतन करने से आसक्ति और कामना उत्पन्न होती हैं, जो क्रोध और लोभ का कारण बनती हैं। श्रीकृष्ण के अनुसार, बार-बार सुख के विचार से मन वस्तु या व्यक्ति से जुड़ता है, जिससे आसक्ति और कामनाएँ बढ़ती हैं। आनंद की इच्छा स्वाभाविक है, परंतु इससे मुक्ति पाने के लिए संसार में सुख का चिंतन त्यागना आवश्यक है। जब यह त्याग होगा, तब क्रोध और लोभ भी समाप्त होंगे।
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 48
वैराज्य प्राप्त कर संसार की आसक्ति से मुक्त होकर ब्राह्मी स्थिति, यानी भगवत प्राप्ति की अवस्था होती है। भगवान की कृपा से जीव के संचित कर्म भस्म हो जाते हैं, और वह दिव्य ज्ञान, प्रेम और आनंद से युक्त होकर जीवन मुक्त कहलाता है। यह अवस्था स्थायी होती है, और जीव संसार के दुख-सुख से ऊपर उठ जाता है।