Taittiriya Upanishad - Hindi
स्वामीजी ने तैत्तिरीय उपनिषद में सच्चे आनंद की व्याख्या की और बताया कि यह केवल ईश्वर में ही मिल सकता है।
उन्होंने बताया कि सांसारिक सुख क्षणभंगुर है और यह सच्ची संतुष्टि नहीं देता। उन्होंने सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में विकासवाद और बिग बैंग थ्योरी जैसी भ्रांतियों को भी दूर किया। स्वामीजी ने बताया कि ईश्वर न केवल ब्रह्मांड के रचयिता हैं, बल्कि वह प्रत्येक जीव के अंदर भी विराजमान हैं। सच्चे आनंद और ईश्वर प्राप्ति के लिए, स्वामीजी ने एक सद्गुरु की शरण में जाने पर जोर दिया।
Swamiji explains the true meaning of aanand (bliss) in the Taittiriya Upanishad and how it can only be found in God. He explained that worldly pleasures are fleeting and do not provide real satisfaction. He also debunked misconceptions such as the theory of evolution and the Big Bang theory regarding the creation of the universe. Swamiji explained that God is not only the creator of the universe but He also resides within every living being. For true aanand and God-realization, Swamiji emphasized taking refuge in a sadguru.
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Taittiriya Upanishad Part 1
जैसे कुत्ते से बचने के लिए मालिक की शरण में जाना पड़ा, वैसे ही माया के दुखों से राहत पाने के लिए भगवान की शरण में जाना आवश्यक है। माया हमें आधि-आत्मिक, आधि-भौतिक, और आधि-दैविक दुख देती है, ताकि हम भगवान की ओर बढ़ें। भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए हमें शरणागत होना पड़ता है। शारीरिक योग से अधिक ...
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Taittiriya Upanishad Part 2
महरशी कपिल ने अपनी माता देवहूती को बताया कि मन के संसार में आसक्त होने से माया का बंधन बना रहता है, जबकि मन के भगवान में लगने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्रोता को मन को संसार से हटाकर भगवान में लगाना चाहिए। बुद्धि, मन से ऊपर होती है, और यदि बुद्धि संसार को सुख का स्रोत मानेगी तो मन वहीं आसक्त ...
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Taittiriya Upanishad Part 3
श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि मन को संसार से हटाना बुद्धि पर निर्भर करता है। जब बुद्धि शास्त्रों के ज्ञान को समझकर संसार की अस्थिरता और दुखों को पहचानती है, तब वह मन को भगवान की ओर मोड़ सकती है। संसार में भौतिक सुख की तलाश अंतहीन है, और जो लोग इसे प्राप्त करने की कोशिश करते रहते हैं, वे कभी स...
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Taittiriya Upanishad Part 4
तैत्रिय उपनिषद के ब्रह्मानंद वल्ली में आनंद तत्व का वर्णन है। यह बताता है कि भौतिक सुख क्षणिक और सीमित है, चाहे वह कितनी भी उच्च स्थिति में क्यों न हो। सबसे सुखी व्यक्ति की कल्पना करते हुए कहा गया है कि एक शक्तिशाली, बुद्धिमान और संपूर्ण पृथ्वी का राजा भी अंततः असंतुष्ट रहेगा। फिर यह आनंद के विभि...
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Taittiriya Upanishad Part 5
शास्त्र कहते हैं कि सच्चा निर्धन वह है जिसकी इच्छाएँ और तृष्णाएँ असीमित हैं, जबकि वह व्यक्ति जो कम में भी संतुष्ट रहता है, वह वास्तव में अमीर है। तृष्णा बढ़ने पर व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में भी असंतुष्ट रहता है। उदाहरण के रूप में, राजा होने के बावजूद अगर उसकी इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं, तो ...
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Taittiriya Upanishad Part 6
इस प्रवचन श्रृंखला में बताया गया कि सच्चा कल्याण ज्ञान से प्राप्त होता है, न कि मंत्र या अन्य साधनों से। ज्ञान से जीवन में परिवर्तन लाना आवश्यक है। तैत्तिरीय उपनिषद में बताया गया कि भगवान आनंद के स्रोत हैं, और संसार में सच्चा सुख नहीं मिलता। संसार का परित्याग कर मन को भगवान से जोड़ना चाहिए, और इस...
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Taittiriya Upanishad Part 7
आत्मा अमर है, न तो शस्त्र उसे काट सकते हैं, न अग्नि जला सकती है, न जल गिला कर सकता है। मृत्यु से डरना व्यर्थ है क्योंकि आत्मा अविनाशी है। जीवन में ज्ञान की आवश्यकता है और यह गुरु से प्राप्त होता है। शास्त्रों को समझने के लिए एक सच्चे गुरु की आवश्यकता है, जो शास्त्रों और ब्रह्म की अवस्था में निपुण...
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Taittiriya Upanishad Part 8
जैसे भगवत प्राप्ति बिना ज्ञान नहीं होता। शाब्दिक ज्ञान का कोई मतलब नहीं जब तक अनुभवात्मक ज्ञान और वैराज्य न हो। गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए वैराज्य जरूरी है। जैसे वाल्मीकि ने गुरु की आज्ञा का पालन किया, हमें भी गुरु की शरणागत होकर वैराज्य से जीवन जीना होगा। सच्चे गुरु को पहचानने के लिए सही ...
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Taittiriya Upanishad Part 9
सच्चे संत और गुरु को पहचानने के लिए केवल बाहरी लक्षण नहीं, बल्कि उनके आंतरिक ज्ञान और प्रभाव पर ध्यान देना चाहिए। असली गुरु वह है जो संसार की बजाय भगवत भक्ति और वैराज्य की दिशा में मार्गदर्शन करता है। चमत्कार दिखाना बाहरी संकेत हो सकता है, लेकिन सच्चा गुरु दिव्य वाणी से शिष्य को बदलता है और उसकी ...
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Taittiriya Upanishad Part 10
व्यक्ति अपने जीवन में किसी अनजानी चीज़ की खोज में भटक रहा है, लेकिन उसे अब तक वह नहीं मिल पाई। यह खोज उसकी आत्मिक प्यास का परिणाम है। वेदों के अनुसार, जो चीज़ वह ढूंढ रहा है, वह उसके अंदर स्थित है, यानी परमात्मा। परमात्मा सर्वव्यापी और नित्य (अनंत) रूप से सभी के भीतर उपस्थित है, लेकिन अज्ञान के क...
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Taittiriya Upanishad Part 11
व्यक्ति संसार के सुखों से तृप्त नहीं होता और आत्मिक संतोष के लिए आध्यात्मिक ज्ञान की पुनरावृत्ति आवश्यक है। ज्ञान को केवल सुनना ही नहीं, उसे मनन कर आत्मसात करना जरूरी है। ज्यों-ज्यों व्यक्ति इसका अभ्यास करता है, वह संसारिक सुखों की नश्वरता को समझता है और क्रोध, लोभ जैसी भावनाओं पर नियंत्रण पाता ह...
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Taittiriya Upanishad Part 12
भगवान सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हैं, लेकिन हम केवल इसे जानते हैं, मानते नहीं। प्रह्लाद ने भगवान को पूरी तरह माना और हिरण्यकशिपु द्वारा दिए गए सभी कष्टों को भगवान की शक्ति से सहन किया। भगवान हर जगह हैं, चाहे वह किसी वस्तु में हो या व्यक्ति में। विश्वास और ज्ञान से ही हम भगवान को प्राप्त कर सकते ह...
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Taittiriya Upanishad Part 13
यह व्याख्यान संसार और उसके निर्माण पर केंद्रित है, जिसमें प्राचीन भारतीय ज्ञान और दर्शनशास्त्र का महत्त्व बताया गया है। वक्ता तैत्री उपनिषद की व्याख्या करते हुए श्रवन, मनन, और निधिध्यासन की तीन सीढ़ियों पर चर्चा करते हैं, जो सच्चे ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनिवार्य हैं। उन्होंने विभिन्न दार्शनिक द...
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Taittiriya Upanishad Part 14
इस व्याख्यान में बिग बैंग थ्योरी की आलोचना की गई है, जिसमें कहा गया कि धमाके से संसार का निर्माण असंभव है। न्यूटन की दृष्टि को प्रस्तुत करते हुए यह भी दर्शाया गया कि एक जटिल सौर मंडल का छोटा मॉडल बिना किसी सृजनकर्ता के नहीं बन सकता। विज्ञान और धार्मिक दृष्टिकोण के बीच अंतर को स्पष्ट करते हुए, यह ...
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Taittiriya Upanishad Part 15
इस व्याख्यान में बताया गया कि संसार की सृष्टि नेचर से स्वतः नहीं होती। मिट्टी से घड़ा बनने के उदाहरण से समझाया गया कि वस्तु निर्माण के लिए ज्ञान, इच्छा, संकल्प, और प्रयास की आवश्यकता होती है। यह भी कहा गया कि नेचर या ब्रह्मा की जगह भगवान का होना आवश्यक है, क्योंकि भगवान ही सृष्टि, प्रबंधन और प्र...
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Taittiriya Upanishad Part 16
इस उपनिषद व्याख्यान में बताया गया कि ज्ञान प्राप्ति से जीवन में निखार, परिवर्तन, और उन्नति होती है। उत्कृष्ट और विश्वसनीय ज्ञान भगवान से प्राप्त होता है, विशेषकर वेदों और उपनिषदों से। तैत्री उपनिषद के माध्यम से यह समझाया गया कि भगवान ही सृष्टि, स्थिति और प्रलय के जिम्मेदार हैं। उपनिषदों में भगवान...
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Taittiriya Upanishad Part 17
ब्रिगू ने अपने पिता वरुण से पूछा कि ब्रह्म क्या है, और तपस्या के माध्यम से अन्न को ब्रह्म माना। अंततः, ब्रिगू ने अनुभव किया कि आनंद ही ब्रह्म है। उपनिषदों के अनुसार, आनंद ही भगवान है, और यह सदा स्थायी और नित्य नव होता है। भगवान आनंद का प्रतीक है, और हर जीव आनंद की खोज में है, इसलिए वास्तव में कोई...
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Taittiriya Upanishad Part 18
एक विद्यार्थी ने पूछा कि हम संसार में क्यों हैं। प्रवचन के बाद, स्वामी जी ने उसे सिनेमाहल में ले जाकर समझाया कि संसार भ्रमित करने वाला है, जैसे सिनेमाहल की अंधकार और टॉर्च की लाइट से भ्रम उत्पन्न होता है। उन्होंने बताया कि भगवान प्रकाश स्वरूप हैं और माया के अंधकार में हम अपने असली स्वरूप को भूल ज...
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Taittiriya Upanishad Part 19
इस प्रवचन श्रृंखला में बताया गया कि जीवन को उन्नति की ओर ले जाने के लिए वेदों से ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। विशेषकर तैत्रि उपनिषद से यह समझा गया कि संसार भगवान की शक्ति का विस्तार और संकुचन है। आनंद भगवान का स्वरूप है, लेकिन माया ने हमें भ्रमित कर रखा है। हम अपने असली स्वरूप को भूलकर शरीर के आ...
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Taittiriya Upanishad Part 20
शरणागति का अर्थ है भगवान की इच्छा में समर्पण। शारीरिक और मानसिक समर्पण में अंतर है। वास्तविक शरणागति के छह अंग होते हैं: भगवान की इच्छा में अपनी इच्छा रखना, उनकी विपरीत इच्छाओं का त्याग करना, उनकी रक्षा पर अटूट विश्वास रखना, उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखना, अपना सर्वस्व उन्हें अर्पित करना और अंतत...
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Taittiriya Upanishad Part 21
इस प्रवचन श्रृंखला में बताया गया कि अध्यात्मिक ज्ञान जीवन में महत्वपूर्ण है, और वेदों से श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त होता है। तैत्री उपनिषद के माध्यम से भगवान के स्वरूप और उनसे जुड़ने की विधि का वर्णन किया गया। शरणागति का महत्व समझाया गया, जिसमें मन, बुद्धि, शरीर आदि को भगवान को समर्पित करने की आवश्यकत...