Taittiriya Upanishad Part 2
Taittiriya Upanishad - Hindi
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महरशी कपिल ने अपनी माता देवहूती को बताया कि मन के संसार में आसक्त होने से माया का बंधन बना रहता है, जबकि मन के भगवान में लगने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्रोता को मन को संसार से हटाकर भगवान में लगाना चाहिए। बुद्धि, मन से ऊपर होती है, और यदि बुद्धि संसार को सुख का स्रोत मानेगी तो मन वहीं आसक्त रहेगा। लेकिन जब बुद्धि भगवान में आनंद का निर्णय करेगी, तभी मन भगवान में लग पाएगा और शरणागति संभव होगी।
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Taittiriya Upanishad Part 3
श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि मन को संसार से हटाना बुद्धि पर निर्भर करता है। जब बुद्धि शास्त्रों के ज्ञान को समझकर संसार की अस्थिरता और दुखों को पहचानती है, तब वह मन को भगवान की ओर मोड़ सकती है। संसार में भौतिक सुख की तलाश अंतहीन है, और जो लोग इसे प्राप्त करने की कोशिश करते रहते हैं, वे कभी स...
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Taittiriya Upanishad Part 4
तैत्रिय उपनिषद के ब्रह्मानंद वल्ली में आनंद तत्व का वर्णन है। यह बताता है कि भौतिक सुख क्षणिक और सीमित है, चाहे वह कितनी भी उच्च स्थिति में क्यों न हो। सबसे सुखी व्यक्ति की कल्पना करते हुए कहा गया है कि एक शक्तिशाली, बुद्धिमान और संपूर्ण पृथ्वी का राजा भी अंततः असंतुष्ट रहेगा। फिर यह आनंद के विभि...
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Taittiriya Upanishad Part 5
शास्त्र कहते हैं कि सच्चा निर्धन वह है जिसकी इच्छाएँ और तृष्णाएँ असीमित हैं, जबकि वह व्यक्ति जो कम में भी संतुष्ट रहता है, वह वास्तव में अमीर है। तृष्णा बढ़ने पर व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में भी असंतुष्ट रहता है। उदाहरण के रूप में, राजा होने के बावजूद अगर उसकी इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं, तो ...