Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 45
          
            Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
           •
          12m
        
      
    श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि क्रोध और लोभ मन के रोग हैं, लेकिन कामना उससे भी भयानक है। कामनाएं जैसे देखने, सुनने, प्रतिष्ठा की इच्छाएं, मन को भटकाती हैं। क्रोध में व्यक्ति अपनी बुद्धि खो देता है, जबकि लोभ कभी तृप्त नहीं होता। तुलसीदास ने भी रामायण में मानस रोगों का वर्णन किया है। श्री कृष्ण बताते हैं कि कामना से जुड़कर व्यक्ति क्रोध, मोह और भ्रम में फँसता है, जिससे बुद्धि नष्ट होती है और अंततः व्यक्ति अपने पतन की ओर बढ़ता है।
Up Next in Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
- 
  Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 46क्रोध, लोभ और कामना मन के रोग हैं। कामना से क्रोध और लोभ उत्पन्न होते हैं। जब कामना पूरी नहीं होती, क्रोध आता है, जिससे बुद्धि नष्ट हो जाती है। कामना पूरी होने पर लोभ बढ़ता है, जिससे शांति नहीं मिलती। श्रीकृष्ण कहते हैं कि शांति कामनाओं के त्याग से मिलती है, न कि उनकी पूर्ति से। कामना वस्तुओं के ... 
- 
  Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 47संसार में सुख का चिंतन करने से आसक्ति और कामना उत्पन्न होती हैं, जो क्रोध और लोभ का कारण बनती हैं। श्रीकृष्ण के अनुसार, बार-बार सुख के विचार से मन वस्तु या व्यक्ति से जुड़ता है, जिससे आसक्ति और कामनाएँ बढ़ती हैं। आनंद की इच्छा स्वाभाविक है, परंतु इससे मुक्ति पाने के लिए संसार में सुख का चिंतन त्य... 
- 
  Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 48वैराज्य प्राप्त कर संसार की आसक्ति से मुक्त होकर ब्राह्मी स्थिति, यानी भगवत प्राप्ति की अवस्था होती है। भगवान की कृपा से जीव के संचित कर्म भस्म हो जाते हैं, और वह दिव्य ज्ञान, प्रेम और आनंद से युक्त होकर जीवन मुक्त कहलाता है। यह अवस्था स्थायी होती है, और जीव संसार के दुख-सुख से ऊपर उठ जाता है। 
