Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 12
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि सुख-दुख आते-जाते रहते हैं, जैसे ऋतुएँ बदलती हैं। इंद्रियों के संपर्क से ये अनुभव होते हैं। जो व्यक्ति सुख-दुख से परे हो जाता है, वह भवसागर पार कर जाता है। भीष्म पितामह का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने कौरवों की ओर से युद्ध किया, पर वे सुख-दुख से परे थे। श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति अटूट थी, और उन्होंने धर्म का मर्म समझाया। अर्जुन को भी अपना कर्तव्य निभाने और संसारिक सुख-दुख से ऊपर उठने की शिक्षा दी।
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 13
प्रवचन के अनुसार, आत्मा और भगवान अनादि हैं। दोनों का अस्तित्व समय की शुरुआत से पहले है। हम भगवान के अंश हैं, इसलिए आनंद की तलाश हमारी प्रकृति है। संसार के सुख-दुख स्थायी नहीं हैं और आत्मा का सच्चा सुख केवल भगवान से मिलता है। हमें समझना चाहिए कि संसार का सुख हमारे वास्तविक आनंद की पूर्ति नहीं कर स...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 14
यह संसार अस्थायी और विचित्र है, जिसमें 300 तत्व परमाणु में हैं, और हमारी आकाशगंगा में अरबों तारे हैं। सत्य और असत्य के बीच का भेद समझने की आवश्यकता है, जैसा श्रीकृष्ण ने कहा। बाहरी संसार अस्थायी है, लेकिन भीतर का संसार मन की कल्पना है, जो असली भ्रम है। भगवान का बनाया संसार सत्य है, लेकिन उसे असत्...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 15
भगवद गीता में पुनरुक्ति (दोहराव) आवश्यक है ताकि ज्ञान अर्जुन के मन में गहराई से बस सके। श्रीकृष्ण आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता का ज्ञान अर्जुन को बार-बार देते हैं क्योंकि हम अक्सर भूल जाते हैं। पुनरुक्ति शिक्षा की महत्वपूर्ण कला है, जिससे मूल सिद्धांत मस्तिष्क में स्थायी रूप से बैठ जाते हैं।...