Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 8
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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सुख और दुख हमारी मान्यताओं पर निर्भर होते हैं। जिस वस्तु में हम सुख मानते हैं, उसके जाने से दुख होता है। उदाहरण के रूप में एक व्यक्ति ने सोने की छड़ी पाई और उसे खोने पर दुखी हो गया। जबकि एक साधु, जिसने उस छड़ी में कोई सुख नहीं माना, बिलकुल भी दुखी नहीं हुआ। श्रीकृष्ण कहते हैं, जो ज्ञानी है, वो न सुख मानता है न दुख, इसीलिए वह सदा शांत रहता है।
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शरीर माटी से बना है और माटी में मिल जाएगा। आत्मा अजर-अमर है, जो शरीर से भिन्न है। भगवान कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि न आत्मा का जन्म होता है, न मृत्यु। शरीर मिट्टी में बदल जाता है, पर आत्मा सनातन और दिव्य है। योग, साधना और ध्यान से इंसान को यह बोध होता है कि "मैं" शरीर से अलग हूं। भगवान और आत्मा...
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जीवन के विभिन्न चरणों में व्यक्ति शरीर बदलता है, जैसे बचपन, युवावस्था, और वृद्धावस्था। श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि इसी तरह आत्मा मृत्यु के बाद नया शरीर धारण करती है, जिसे पुनर्जन्म कहते हैं। शरीर के कोशाणु लगातार बदलते रहते हैं, लेकिन व्यक्ति वही रहता है। भौतिक विज्ञान भी मानता है कि शरीर हर...
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