Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 33
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
•
15m
जितनी चिंता संसार के लिए की, उतनी भगवान की भक्ति में करते तो यमराज से मुक्ति मिलती। संसार में लोग कठिन काम कर लेते हैं, पर भगवत प्राप्ति कठिन लगती है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि संसार के भोग और ऐश्वर्य में लिप्त व्यक्ति दृढ़ निश्चय नहीं कर पाता। लेकिन भगवत प्राप्ति की यात्रा, जो आंतरिक होती है, दृढ़ संकल्प और निरंतर प्रयास से ही सफल हो सकती है। भोग की तृष्णा भगवान से भी बड़ी है, इसलिए साधक को यह समझना चाहिए कि सच्चा सुख केवल भगवान में है।
Up Next in Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
-
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 34
संसार में सुख मानने के भ्रम से हम फँस जाते हैं। सुख न सभी को मिलता है, न सदा के लिए। असली सुख भगवान की भक्ति में है, और जब यह समझ हो जाए कि संसार में किसी को भी सच्चा सुख नहीं मिला, तब साधक संसार को छोड़कर भगवान की ओर बढ़ने का निर्णय कर लेता है। लोग संसार में कठिन कार्य कर लेते हैं, पर भगवत-प्राप...
-
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 35
सभी शास्त्र एक बात सिखाते हैं: भगवान से प्रेम करो, यही मोक्ष का मार्ग है। वेद का लक्ष्य भी भगवान की भक्ति है, जिससे सभी धर्मों का पालन स्वतः हो जाता है। जैसे पेड़ की जड़ में पानी डालने से पूरे पेड़ को पोषण मिलता है, वैसे ही भगवान से प्रेम करने पर सभी कर्तव्य पूर्ण हो जाते हैं। भक्ति के बिना अन्य ...
-
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 36
भगवान जीव को कर्म करने की शक्ति देता है, लेकिन उसका उपयोग जीव पर छोड़ता है। श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि कर्म करो, पर फल की इच्छा मत रखो। कर्म का विज्ञान बताकर वे कहते हैं कि भगवान कर्म का प्रेरक है, पर जिम्मेदारी जीव की है। व्यक्ति को आलसी नहीं बनना चाहिए और अपने कर्मों का अभिमान नहीं करना चाह...