Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 11
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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युवावस्था में प्रेम में लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं। पर शादी के बाद कुछ समय में ही रिश्ते में खटास आ जाती है और जीवन बर्बाद लगने लगता है। यह संसार का स्वभाव है; सुख स्थिर नहीं रहता, समय के साथ घटता जाता है और अंततः समाप्त हो जाता है। गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि सुख-दुख अस्थायी हैं और जीवन में उनका आना-जाना लगा रहता है, इसलिए उन्हें सहन करना चाहिए और स्थिर बुद्धि से जीना चाहिए।
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 12
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि सुख-दुख आते-जाते रहते हैं, जैसे ऋतुएँ बदलती हैं। इंद्रियों के संपर्क से ये अनुभव होते हैं। जो व्यक्ति सुख-दुख से परे हो जाता है, वह भवसागर पार कर जाता है। भीष्म पितामह का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने कौरवों की ओर से युद्ध किया, पर वे सुख-दुख से परे थे। श्रीकृष्...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 13
प्रवचन के अनुसार, आत्मा और भगवान अनादि हैं। दोनों का अस्तित्व समय की शुरुआत से पहले है। हम भगवान के अंश हैं, इसलिए आनंद की तलाश हमारी प्रकृति है। संसार के सुख-दुख स्थायी नहीं हैं और आत्मा का सच्चा सुख केवल भगवान से मिलता है। हमें समझना चाहिए कि संसार का सुख हमारे वास्तविक आनंद की पूर्ति नहीं कर स...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 14
यह संसार अस्थायी और विचित्र है, जिसमें 300 तत्व परमाणु में हैं, और हमारी आकाशगंगा में अरबों तारे हैं। सत्य और असत्य के बीच का भेद समझने की आवश्यकता है, जैसा श्रीकृष्ण ने कहा। बाहरी संसार अस्थायी है, लेकिन भीतर का संसार मन की कल्पना है, जो असली भ्रम है। भगवान का बनाया संसार सत्य है, लेकिन उसे असत्...