Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 23
Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi
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गुरु गोबिंद सिंह मुगलों से युद्ध कर रहे थे, जब उन्होंने एक विरोधी को गिराकर मारने का सोचा, लेकिन विरोधी ने उन पर थूक दिया। गुरु जी को गुस्सा आया, पर उसे नहीं मारा क्योंकि यह गुस्से में किया कर्म होता। उन्होंने कहा कि धर्म युद्ध निश्छलता से करना चाहिए, गुस्से से नहीं। कर्म को निष्काम भाव से करना आवश्यक है, जैसा श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता में सिखाया—कर्म करते हुए फल की इच्छा या आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 24
गुस्सा बॉस पर नहीं, बल्कि घर पर निकालते हैं क्योंकि बुद्धि गुस्से को कंट्रोल कर लेती है। बुद्धि शरीर की सेंट्रल गवर्नमेंट है, जो विवेक और संयम से काम करती है। अगर बुद्धि सही निर्णय ले, तो मन नियंत्रित रहता है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यही सिखाया कि बुद्धियोग द्वारा कर्म करते समय आसक्ति छोड़कर विवेक...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 25
शंकराचार्य ने कहा, मानव शरीर दुर्लभ है। यदि भगवत प्राप्ति नहीं की, तो पुनर्जन्म के चक्र में फंसकर जानवरों का जन्म भी मिल सकता है। 84 लाख योनियों में भटकने से बचने के लिए साधना आवश्यक है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि थोड़ी सी भी साधना महान भय से बचा सकती है और अगला जन्म मानवी हो, इसकी कोई गारंटी ...
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Bhagavad Gita Chapter 2 - Hindi Part 26
भगवान ने हमें केवल एक मन दिया, ताकि हम पूर्ण शरणागति कर सकें। अगर कई मन होते, तो एक मन से दुनियावी चीजों में और एक भगवान की भक्ति में लग जाता। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि मन का सही उपयोग बुद्धियोग से होता है, जिससे आसक्ति रहित होकर भगवान की भक्ति की जा सकती है। गोपियों ने भी कहा था, मन एक ही है...