Bhagavad Gita Chapter 10 - Hindi
"यह प्रवचन तीन प्रकार के ग्रंथों—कृत, स्मृति, और विनिर्गत—की व्याख्या करता है। कृत ग्रंथ मानव बुद्धि से लिखे जाते हैं, स्मृति ग्रंथ ऋषि-मुनियों की प्रेरणा से, और विनिर्गत ग्रंथ, जैसे वेद, स्वयं प्रकट होते हैं। भगवद गीता स्मृति ग्रंथ होते हुए भी ईश्वरीय ज्ञान का स्रोत मानी जाती है।
ज्ञान और भक्ति का गहरा संबंध है—सही ज्ञान से भक्ति मजबूत होती है। श्रीकृष्ण अर्जुन को ज्ञान देकर उसकी भक्ति सुदृढ़ करते हैं, परंतु भगवान को बाहरी ज्ञान से नहीं, आंतरिक अनुभव से जाना जाता है। अहंकार शाब्दिक ज्ञान से बढ़ सकता है, लेकिन वास्तविक ज्ञान विनम्रता लाता है।
भगवान के नियम अपरिवर्तनीय हैं, और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए श्रद्धा और शरणागति आवश्यक हैं। भक्त भगवान में लीन रहते हैं, जिससे उन्हें दिव्य आनंद मिलता है। व्यक्ति की स्वतंत्रता और भगवान की शक्ति मिलकर उसके जीवन को आकार देते हैं।"
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भगवद गीता का महत्त्व भगवद गीता अध्याय 10 - भाग 1
तीन प्रकार के ग्रंथ होते हैं: कृत, स्मृति, और विनिर्गत। कृत ग्रंथ लेखक की बुद्धि से लिखे गए होते हैं, जिनमें त्रुटियाँ हो सकती हैं, इसलिए उन पर विश्वास कठिन होता है। स्मृति ग्रंथ, जैसे पुराण और रामायण, ऋषि-मुनियों द्वारा भगवान की प्रेरणा से लिखे गए हैं, इसलिए उन पर श्रद्धा होती है। विनिर्गत ग्रंथ...
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भक्ति में ज्ञान का महत्त्व भगवद गीता अध्याय 10 - भाग 2
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान देने का महत्व बताया, जिससे उसकी भक्ति मजबूत हो सके। ज्ञान और भक्ति परस्पर जुड़े हुए हैं—ज्ञान से भक्ति की जड़ें मजबूत होती हैं। जैसे जैसे किसी वस्तु का मूल्य समझ आता है, प्रेम भी बढ़ता है। इसी तरह, भगवान का सही ज्ञान प्राप्त करने से भक्ति भी गहरी होती है। शास्त्र ज्ञा...
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भगवान की कृपा कैसे होगी भगवद गीता अध्याय 10 - भाग 3
वास्तविक गुरु पहले शिष्य को शास्त्र ज्ञान देता है ताकि उसे जीवन, माया, ब्रह्म, और भक्ति का सही ज्ञान हो। यह ज्ञान शिष्य के अंत:करण में बैठता है और शास्त्र ज्ञान दिव्य होने से उसका मंथन करने पर अमृत प्राप्त होता है। श्रीकृष्ण भी अर्जुन को यह ज्ञान इसलिए देते हैं क्योंकि अर्जुन उनसे ईर्ष्या नहीं कर...
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भगवान को जाना नहीं जा सकता भगवद गीता अध्याय 10 - भाग 4
भगवान के नियम अपरिवर्तनीय हैं, जबकि मानव द्वारा बनाए गए संविधान बदलते रहते हैं। जीव को पहले श्रद्धा और ज्ञान प्राप्त करना होता है, फिर भक्ति उत्पन्न होती है। श्रीकृष्ण अर्जुन को ज्ञान देकर उसकी भक्ति को सुदृढ़ कर रहे हैं, लेकिन कहते हैं कि भगवान को कोई नहीं जान सकता, न देवता, न ऋषि-मुनि। इसका कार...
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दो प्रकार के ज्ञान भगवद गीता अध्याय 10 - भाग 5
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि वह उन्हें प्रिय है और इसलिए उन्हें ज्ञान देंगे ताकि उनकी भक्ति बढ़े। हालांकि, श्रीकृष्ण ने कहा कि कोई भी उन्हें पूरी तरह नहीं जान सकता। इसके बावजूद, जो उन्हें वास्तव में जान लेता है, वह माया से मुक्त होकर परम लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। यहां विरोधाभास प्रतीत ह...
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क्या भगवद गीता पढ़ने से भगवान मिलेंगे भगवद गीता अध्याय 10 - भाग 6
इस व्याख्यान का सार यह है कि केवल शास्त्रों का अध्ययन और शाब्दिक ज्ञान प्राप्त कर लेने से अहंकार उत्पन्न हो सकता है, जो आध्यात्मिक उन्नति में बाधक बनता है। वास्तविक ज्ञान वह है जो अनुभव से प्राप्त होता है और विनम्रता उत्पन्न करता है। अहंकार को दूर करने के लिए शाब्दिक ज्ञान आवश्यक है, लेकिन इसे अन...
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क्या भगवान की इच्छा से ही सब कुछ होता है भगवद गीता अध्याय 10 - भाग 7
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि मनुष्यों में गुण और अवगुण दोनों उनकी शक्ति से प्रकट होते हैं। शांति, अशांति, यश, और अपयश सभी भगवान की प्रेरणा से होते हैं, लेकिन व्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रयास का भी इसमें योगदान होता है। जैसे बीज और परिस्थितियों से पौधा उगता है, वैसे ही मनुष्य के कर्म और ...
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भगवान हमारे दुःख दूर क्यो नहीं करतें भगवद गीता अध्याय 10 - भाग 8
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि सप्तऋषि, चार कुमार, और 14 मनु सब भगवान से ही उत्पन्न हुए हैं, और मनु से मानव जाति का प्रकट होना भी भगवान की कृपा है। भगवान को परमपिता मानते हुए, हम उनके ही अंश हैं। एक जीव ने भगवान से पूछा कि अगर आप हमारे पिता हैं, तो हमारी दुखद स्थिति क्यों है? भगवान ने उत्त...
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भगवान में मन का लगाव भगवद गीता अध्याय 10 - भाग 9
श्रीकृष्ण गीता के दसवें अध्याय के नौवें श्लोक में बताते हैं कि उनके भक्त पूरी तरह से भगवान में लीन रहते हैं। उनका मन और प्राण भगवान में लगा रहता है, और वे एक-दूसरे के साथ भगवान की चर्चा करते हुए संतुष्ट और आनंदित रहते हैं। उनके व्यवहार, वाणी, और धन का उपयोग यह दिखाता है कि उनका मन भगवान में रमण क...