Sharanagati Rahasya - Hindi
भगवान का सच्चा अनुभव पाने के लिए आत्मसमर्पण अनिवार्य है। बाहरी प्रार्थना और मंदिर जाने से अधिक महत्वपूर्ण है, सच्चे मन से भगवान की शरण में जाना। भगवान की कृपा तभी प्राप्त होती है जब हम अहंकार और दिखावे को छोड़कर पूर्ण समर्पण करते हैं। शरणागति की अवधारणा वेदों में भी वर्णित है, जो भगवान की माया से मुक्ति का मार्ग दिखाती है। जब हम अपनी इच्छाओं को भगवान की इच्छाओं के अनुरूप बना लेते हैं, तब ही सच्ची भक्ति संभव होती है। श्रीकृष्ण ने गीता में भी शरणागति को सर्वोच्च मार्ग बताया है। शरणागति का अर्थ केवल शब्दों में नहीं, बल्कि हृदय से आत्मसमर्पण करना है। सच्चा भक्त वह है जो भगवान की कृपा को स्वीकार करता है और विपरीत परिस्थितियों में भी ईश्वर पर विश्वास बनाए रखता है। इस प्रकार, शरणागति ही मोक्ष और भगवत कृपा प्राप्त करने का वास्तविक मार्ग है।
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शरणागति का रहस्य - 25 लक्ष्य प्राप्ति करने का मंत्र
जीवन का लक्ष्य जानने के बावजूद कई लोग भगवान की शरण में नहीं आते। इसका मुख्य कारण आलस्य और लापरवाही है। श्री कृष्ण ने गीता में बताया कि चार प्रकार के लोग शरणागत नहीं होते: मूर्ख, जो जीवन का लक्ष्य नहीं जानते; नराधम, जो जानकर भी नहीं करते; मायावी, जिनका ध्यान बुद्धि के मनोरंजन पर होता है; और आसुरी ...
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शरणागति का रहस्य - 26 मन की अद्भुत शक्ति
90 शब्दों में सारांश (हिंदी में): जब हम आत्मा को समझते हैं, तो हमें यह समझना चाहिए कि सब कुछ, जैसे शरीर, परिवार, बैंक बैलेंस, आदि, असली हमारा नहीं है। असली हमारा मन है। भगवान कहते हैं कि हमें अपना मन उन्हें अर्पित करना चाहिए, क्योंकि मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है। यदि मन का सहयोग शरीर और इंद्रिय...
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शरणागति का रहस्य - 27 मन के धोखे से बचें
मन ही बंधन और मोक्ष का कारण है। जैसे मन को बनाएंगे, वैसे ही बनेंगे। मन के जीते जीत है, हारे हार है। अगर हम भगवान के समर्पण में मन को सही से लगाएं, तो मोक्ष की प्राप्ति संभव है। जगत गुरु श्री कृपालू जी ने बताया है कि बाहरी दिखावे से ज्यादा महत्वपूर्ण है मन की स्थिति। अंततः, मन को भगवान के ध्यान मे...
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शरणागति का रहस्य - 28 कर्म सिद्धांत
अनेक जन्मों से भक्ती कर रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं मिली क्योंकि हम केवल शरीर से भक्ती करते हैं। भगवान कहते हैं कि मन को पूरी तरह से उन्हें समर्पित करना होगा। शरणागति में मन की स्थिति महत्वपूर्ण है; अगर मन संसार में ही लगे रहे, तो भगवान में ध्यान नहीं लग सकता। कर्म को भगवान के लिए समर्पित करना ही अ...