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Taittiriya Upanishad Part 5
19m
शास्त्र कहते हैं कि सच्चा निर्धन वह है जिसकी इच्छाएँ और तृष्णाएँ असीमित हैं, जबकि वह व्यक्ति जो कम में भी संतुष्ट रहता है, वह वास्तव में अमीर है। तृष्णा बढ़ने पर व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में भी असंतुष्ट रहता है। उदाहरण के रूप में, राजा होने के बावजूद अगर उसकी इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं, तो वह गरीब ही रहता है। संतोष और इच्छाओं की सीमितता ही सच्चा सुख देती हैं। सुख की तलाश बाहरी वस्तुओं में नहीं, भीतर के आनंद में होती है।