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Taittiriya Upanishad Part 11
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व्यक्ति संसार के सुखों से तृप्त नहीं होता और आत्मिक संतोष के लिए आध्यात्मिक ज्ञान की पुनरावृत्ति आवश्यक है। ज्ञान को केवल सुनना ही नहीं, उसे मनन कर आत्मसात करना जरूरी है। ज्यों-ज्यों व्यक्ति इसका अभ्यास करता है, वह संसारिक सुखों की नश्वरता को समझता है और क्रोध, लोभ जैसी भावनाओं पर नियंत्रण पाता है। सतत ज्ञान के चिंतन से व्यक्ति को सही मार्गदर्शन मिलता है और उसके जीवन में स्थायित्व आता है, जिससे वह गलतियों से बच सकता है और आत्मिक शांति प्राप्त कर सकता है।