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मानव जीवन का प्रयोजन । विकास के सूत्र भाग 13
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असली धर्म है, मानव को महामानव बनाना, यानी अपनी आंतरिक क्षमता को पहचान कर उन्नति करते हुए परम लक्ष्य तक पहुँचना। मनुष्य की प्रवृत्ति सदा विकास करने की होती है, जैसे ओलंपिक्स में रिकॉर्ड टूटते रहते हैं। भगवान ब्रह्म न सिर्फ बड़ा है, बल्कि दूसरों को भी बड़ा बनाता है। मानव जीवन का उद्देश्य है, खुद को श्रेष्ठ बनाना और फिर श्रेष्ठ कार्य करना। यही असली धर्म है।